वर्तमान में राज्य में 1.15 लाख हेक्टेयर में आलू लगाया जाता है। जिनमें से 1.08 लाख हेक्टेयर बनासकांठा में हैं। आलू नगर डिसा में प्रति एकड़ 40,484 हेक्टेयर में, 3597 हेक्टेयर में वर्तमान में 2019-20 में लगाया जाता है। पूरे देश में जहां सबसे बड़े आलू पके हैं। बनासकांठा से सबसे ज्यादा नुकसान होता है।
आलू के पौधे की मूली को काटकर आलू के अंदर के हिस्से को इल्ली काफी नुकसान पहुंचा रही है। गुजरात में आलू के उत्पादन का 16 प्रतिशत खराब हो जाता है। जिसमें मूली को काटनेवाली ईल से 3 से 5 प्रतिशत नुकसान शामिल हैं।
इल्ली दिन के दौरान भूमि की दरारों में रहती हैं। और रात में, मूली को जमीन से काटकर सूजी हुई पत्ती खाई जाती है। फसल के बाद के चरणों में, इल्ली मिट्टी में उगने वाले आलू कंदों को खा जाती है। इसलिए, उत्पादन और गुणवत्ता में कमी है।
इल्ली इनमें से अधिकांश फसलें मेजबान फसलों जैसे आलू, टमाटर, बैंगन, तम्बाकू, फूलगोभी, सेम से आती हैं। हल्के हरे रंग और भूरे रंग के सिर के साथ एक पूरी तरह से विकसित इल्ली लगभग 15-20 मिमी लम्बी होती है। इल्ली को स्पर्श करते ही वो लपट जाती है। इसका भूरा-काला रंग है। शरीर पर क्षैतिज रेखाएं होती हैं। जब 2-13 दिनों में अंडे 1.5 मिमी से लंबी ईंट निकलती है, तो पीला रंग, बछड़ा 10-30 दिन का होता है,और वयस्क 42 से 45 मिमी लंबा होता है, जिसमें 70 दिनों का काला रंग होता है। एक जीवन चक्र 48 से 77 दिनों तक रहती है। यह इल्ली एक वर्ष में 3 से 4 जीवन चक्र पूरा करती हैं।
गुजरात में आलू के उत्पादन का 16 प्रतिशत खराब हो जाता है। जिसमे इल्ली की वजह से 3 से 5 प्रतिशत नुकसान शामिल हैं। राज्य में 34 लाख हेक्टेयर में आलू का उत्पादन 2020 तक बढ़कर 2.92 करोड़ टन होने का अनुमान है। 3 करोड़ 20 लाख रुपये के आलू फेंक देने पड़ते हैं। इसमें इल्ली ने खाये हुए आलू भी शामिल है।
इल्ली को मारने के लिए घास को इक्क्ठा करते है , तो वो उसके नीचे छिप जाती है। अधिकांश इल्ली इस तरह से नष्ट हो जाती हैं। गहरी खेती। फसल को बदल दिया जाता है। देर से बोये जाने वाले आलू में इल्ली की अधिक मात्रा होती है।
सब्जियों की फसलों ने सबसे बड़ा नुकसान आलू की फसल में होता है। इसलिए आने वाले दिनों में इल्ली की वजह से भारी नुकसान हो सकता है। जिसका कोई हल अभी तक नहीं मिल पाया है।